This is the first article in Hindi on this blog. Abridged version has been published by the local Dainik Jagran, on whose request this was written in the first place. To make it relevant to the local readership, only the services under the State Government have been used as example.
भारत एक संसदीय लोकतंत्र है। अर्थात देश की कार्यपालिका, जिसे आम भाषा मे सरकार कहा जाता है, को निर्वाचित जनप्रतिनिधि सुशोभित करते हैं। परन्तु भारत जैसे विशाल, विषम एवं विविधता पूर्ण देश को एक सूत्र से संचालित करने में निर्वाचित कार्यपालिका के साथ साथ एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका स्थायी कार्यपालिका की है।
स्थायी सिविल सेवाओं का उद्भव औपनिवेशिक काल मे हुआ था। स्वतन्त्रता आंदोलन के समय सिविल सेवा का एक मुख्य कार्य कानून का प्रवर्तन था, एवं स्वतन्त्रता आंदोलनकर्ताओं के साथ सेवा का अनुभव उसी भूमिका में प्रतिद्वंद्वी के रूप में हुआ था । परंतु 1937 में जब प्रान्तों में स्वशासन प्रणाली लागू हुई, तब भारत के निर्माताओं ने सिविल सेवा की कार्य प्रणाली को अंदर से देखा और परखा। इसीलिए संविधान सभा मे सरदार पटेल ने स्वतन्त्र भारत मे भी स्थायी सिविल सेवा को बनाए रखने का पुरजोर समर्थन किया। उनका मत था कि ऐसी संकट की घड़ी में प्रशासनिक व्यवस्था निर्बाध चलाने के लिए अनुभवी प्रशासकों की आवश्यकता थी।
स्वतन्त्रता एवं उसके बाद के वर्षों में में विभाजन के घाव भरने, अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने में एवं नियोजन की कार्रवाई के माध्यम से पहले कृषि क्षेत्र एवं उसके बाद वृहद औद्योगिक क्षेत्र में विस्तार लाने में भी सिविल सेवा की भूमिका अग्रणी रही है। यह वह समय था जब अर्थव्यवस्था पर शासकीय नियंत्रण सर्वव्यापी था। निस्संदेह तब से ले कर आज तक देश मे बहुत परिवर्तन आ गया है। निजी क्षेत्र अर्थव्यवस्था का मुख्य अंग है। जनता पहले से अधिक शिक्षित एवं जागरूक है। जनप्रतिनिधि भी उसी प्रकार और प्रबुद्ध हो गए हैं। इसे देख कर बहुत से लोग वर्तमान परिदृश्य में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सिविल सेवाओं की प्रासंगिकता पर प्रश्न करते हैं। चूंकि स्थायी कार्यपालिका निर्वाचन से ना चुन कर परीक्षा से चुनी जाती है, अतः लोकतंत्र में अनिर्वाचित व्यक्तियों का शासन प्रशासन का अंग होना कौतूहल का विषय हो सकता है।
सिविल सेवा का प्रथम योगदान है अनुभवी प्रशासनिक निरन्तरता। अपने देश मे हर वर्ष कहीं ना कहीं चुनाव होते हैं। सत्ता का परिवर्तन होता है। योजनाएं परिवर्तित होती हैं। नीतियाँ परिवर्तित होती हैं। निर्वाचन के समय उम्मीदवार अपनी समझ के अनुसार घोषणाएं करते हैं। निर्वाचन के उपरांत इन घोषणाओं को संवैधानिक साँचे में ढाल कर, संविधान से विरोधाभास रखने वाले अंगों को हटाकर, चुनी हुई सरकारों की मंशा को सुगमता से धरातल पर लाने का कार्य स्थायी कार्यपालिका का होता है। सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारीगण, जिनके पास उपजिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, नगर आयुक्त, प्रबन्ध निदेशक, एवं जिलाधिकारी के रूप में वर्षों का अनुभव होता है, इन मंशाओं को दिशा निर्देश एवं शासनादेश में परिवर्तित करते हैं, ताकि आज के फील्ड स्तरीय अधिकारी (जो कि कल के सचिव एवं प्रमुख सचिव होंगे) उस मंशा को साक्षात कर सकें।
इसे से जुड़ा हुआ प्रश्न राजनैतिक निष्पक्षता का होता है। आज के परिवेश में ब्यूरोक्रेसी के राजनैतिकीकरण के आक्षेप लगते रहते हैं। परंतु यह भी सत्य है कि आज भी सिविल सेवकों की विश्वसनीयता विभिन्न संस्थाओं में सर्वोपरी है। गत वर्ष एक प्रसिद्ध मीडिया हाउस द्वारा किये गए सर्वे में "जिला कलेक्टर" की विश्वसनीयता जनता के मध्य सेना के समतुल्य पायी गयी थी। अतः जहाँ पर राजनैतिक मतभेद हो, वहाँ आज भी स्थायी सिविल सेवक को एक तटस्थ निर्णायक माना जाता है। सिविल सेवा, वरिष्ठतम से कनिष्ठतम तक, स्थानीय व्यवस्था में एक विविधता का पुट लाती है। अखिल भारतीय सेवा में किसी राज्य में मात्र एक तिहाई सदस्य ही उस राज्य के निवासी होते हैं, एवं दो तिहाई अन्य राज्यों के। राज्य के अंदर भी उच्चाधिकारी अपने गृह मंडल में, एवं अन्य अधिकारी अपने गृह जनपद में नहीं तैनात हो सकते हैं। ग्राम स्तरीय कर्मचारी (स्थायी) भी अपने ग्राम में तैनात नहीं हो सकते हैं। अतः किसी भी स्थानीय परिवेश में सिविल सेवक तटस्थ माना जाता है।
सिविल सेवा की एक अन्य महत्वपूर्ण भूमिका है उसका ढांचागत फैलाव। इसे ऐसे ही "स्टील फ्रेम" की उपाधि नहीं दी गयी थी। आज के परिदृश्य में एक फील्ड स्तरीय सिविल सेवक सामान्य तौर पर स्थानीय आवश्यकता, राजनैतिक खींचतान, स्थापित नीति आदि के मध्य समन्वय कर के कार्य करता है। परंतु आपदा काल बिना समय व्यर्थ किए सिविल सेवा कमांड एंड कंट्रोल भूमिका में आ जाती है। देश के कैबिनेट सचिव से लेकर, राज्य के प्रमुख सचिव गण, जिलाधिकारी से लेकर ग्राम स्तर पर लेखपाल एवं पंचायत सचिव न्यूनतम काल मे एक समेकित योजना का अंग हो जाते हैं। आपके जनपद में स्वयं जब वृहद lockdown की घोषणा हुई थी, तो घोषणा की सुबह तक ही, बिना किसी पूर्व तैयारी के, नगरीय क्षेत्र में (एवं शाम तक देहात क्षेत्र में) डोर टू डोर डिलीवरी की व्यवस्था लागू करा दी गयी थी। मात्र एक दो फोन कॉल पर व्यवस्था का स्वरूप समझ कर प्रशासन एवं पुलिस ने एक व्यवस्था को गतिमान कर दिया। पूरे देश मे इसी प्रकार लगभग एकरूप lockdown व्यवस्था संचालित हो गई। विभिन्न राज्यों में तैनात बैचमेट से सम्पर्क कर के उनके यहाँ की जा रही बेस्ट प्रैक्टिस जान कर उसे अल्प समय मे यथावश्यक संशोधित कर के लागू करवाना, यह केवल एक संगठित सिविल सेवा में सम्भव है। तुलना के लिए अमेरिका में lockdown का अनुभव देखा जा सकता है, जहाँ इस प्रकार की एकरूप व्यवस्था नहीं थी।
अतः यह देखा जा सकता है कि सामान्य समय मे संयोजक, एवं आपात स्थिति में संचालक के रूप में सिविल सेवा देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। जनपद में सिविल सेवा के वरिष्ठ व्यक्ति के रूप में मेरी समस्त सिविल सेवको से अपील रहेगी कि समाज द्वारा स्थापित विश्वास को और दृढ़ बनाने के लिए, एवं संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत जन आकांक्षाओं को फलिभूत करते हुए आदर्श भारत की ओर अग्रसर रखने हेतु निरन्तर प्रयासरत रहें।
भारत एक संसदीय लोकतंत्र है। अर्थात देश की कार्यपालिका, जिसे आम भाषा मे सरकार कहा जाता है, को निर्वाचित जनप्रतिनिधि सुशोभित करते हैं। परन्तु भारत जैसे विशाल, विषम एवं विविधता पूर्ण देश को एक सूत्र से संचालित करने में निर्वाचित कार्यपालिका के साथ साथ एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका स्थायी कार्यपालिका की है।
स्थायी सिविल सेवाओं का उद्भव औपनिवेशिक काल मे हुआ था। स्वतन्त्रता आंदोलन के समय सिविल सेवा का एक मुख्य कार्य कानून का प्रवर्तन था, एवं स्वतन्त्रता आंदोलनकर्ताओं के साथ सेवा का अनुभव उसी भूमिका में प्रतिद्वंद्वी के रूप में हुआ था । परंतु 1937 में जब प्रान्तों में स्वशासन प्रणाली लागू हुई, तब भारत के निर्माताओं ने सिविल सेवा की कार्य प्रणाली को अंदर से देखा और परखा। इसीलिए संविधान सभा मे सरदार पटेल ने स्वतन्त्र भारत मे भी स्थायी सिविल सेवा को बनाए रखने का पुरजोर समर्थन किया। उनका मत था कि ऐसी संकट की घड़ी में प्रशासनिक व्यवस्था निर्बाध चलाने के लिए अनुभवी प्रशासकों की आवश्यकता थी।
स्वतन्त्रता एवं उसके बाद के वर्षों में में विभाजन के घाव भरने, अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने में एवं नियोजन की कार्रवाई के माध्यम से पहले कृषि क्षेत्र एवं उसके बाद वृहद औद्योगिक क्षेत्र में विस्तार लाने में भी सिविल सेवा की भूमिका अग्रणी रही है। यह वह समय था जब अर्थव्यवस्था पर शासकीय नियंत्रण सर्वव्यापी था। निस्संदेह तब से ले कर आज तक देश मे बहुत परिवर्तन आ गया है। निजी क्षेत्र अर्थव्यवस्था का मुख्य अंग है। जनता पहले से अधिक शिक्षित एवं जागरूक है। जनप्रतिनिधि भी उसी प्रकार और प्रबुद्ध हो गए हैं। इसे देख कर बहुत से लोग वर्तमान परिदृश्य में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सिविल सेवाओं की प्रासंगिकता पर प्रश्न करते हैं। चूंकि स्थायी कार्यपालिका निर्वाचन से ना चुन कर परीक्षा से चुनी जाती है, अतः लोकतंत्र में अनिर्वाचित व्यक्तियों का शासन प्रशासन का अंग होना कौतूहल का विषय हो सकता है।
सिविल सेवा का प्रथम योगदान है अनुभवी प्रशासनिक निरन्तरता। अपने देश मे हर वर्ष कहीं ना कहीं चुनाव होते हैं। सत्ता का परिवर्तन होता है। योजनाएं परिवर्तित होती हैं। नीतियाँ परिवर्तित होती हैं। निर्वाचन के समय उम्मीदवार अपनी समझ के अनुसार घोषणाएं करते हैं। निर्वाचन के उपरांत इन घोषणाओं को संवैधानिक साँचे में ढाल कर, संविधान से विरोधाभास रखने वाले अंगों को हटाकर, चुनी हुई सरकारों की मंशा को सुगमता से धरातल पर लाने का कार्य स्थायी कार्यपालिका का होता है। सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारीगण, जिनके पास उपजिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, नगर आयुक्त, प्रबन्ध निदेशक, एवं जिलाधिकारी के रूप में वर्षों का अनुभव होता है, इन मंशाओं को दिशा निर्देश एवं शासनादेश में परिवर्तित करते हैं, ताकि आज के फील्ड स्तरीय अधिकारी (जो कि कल के सचिव एवं प्रमुख सचिव होंगे) उस मंशा को साक्षात कर सकें।
इसे से जुड़ा हुआ प्रश्न राजनैतिक निष्पक्षता का होता है। आज के परिवेश में ब्यूरोक्रेसी के राजनैतिकीकरण के आक्षेप लगते रहते हैं। परंतु यह भी सत्य है कि आज भी सिविल सेवकों की विश्वसनीयता विभिन्न संस्थाओं में सर्वोपरी है। गत वर्ष एक प्रसिद्ध मीडिया हाउस द्वारा किये गए सर्वे में "जिला कलेक्टर" की विश्वसनीयता जनता के मध्य सेना के समतुल्य पायी गयी थी। अतः जहाँ पर राजनैतिक मतभेद हो, वहाँ आज भी स्थायी सिविल सेवक को एक तटस्थ निर्णायक माना जाता है। सिविल सेवा, वरिष्ठतम से कनिष्ठतम तक, स्थानीय व्यवस्था में एक विविधता का पुट लाती है। अखिल भारतीय सेवा में किसी राज्य में मात्र एक तिहाई सदस्य ही उस राज्य के निवासी होते हैं, एवं दो तिहाई अन्य राज्यों के। राज्य के अंदर भी उच्चाधिकारी अपने गृह मंडल में, एवं अन्य अधिकारी अपने गृह जनपद में नहीं तैनात हो सकते हैं। ग्राम स्तरीय कर्मचारी (स्थायी) भी अपने ग्राम में तैनात नहीं हो सकते हैं। अतः किसी भी स्थानीय परिवेश में सिविल सेवक तटस्थ माना जाता है।
सिविल सेवा की एक अन्य महत्वपूर्ण भूमिका है उसका ढांचागत फैलाव। इसे ऐसे ही "स्टील फ्रेम" की उपाधि नहीं दी गयी थी। आज के परिदृश्य में एक फील्ड स्तरीय सिविल सेवक सामान्य तौर पर स्थानीय आवश्यकता, राजनैतिक खींचतान, स्थापित नीति आदि के मध्य समन्वय कर के कार्य करता है। परंतु आपदा काल बिना समय व्यर्थ किए सिविल सेवा कमांड एंड कंट्रोल भूमिका में आ जाती है। देश के कैबिनेट सचिव से लेकर, राज्य के प्रमुख सचिव गण, जिलाधिकारी से लेकर ग्राम स्तर पर लेखपाल एवं पंचायत सचिव न्यूनतम काल मे एक समेकित योजना का अंग हो जाते हैं। आपके जनपद में स्वयं जब वृहद lockdown की घोषणा हुई थी, तो घोषणा की सुबह तक ही, बिना किसी पूर्व तैयारी के, नगरीय क्षेत्र में (एवं शाम तक देहात क्षेत्र में) डोर टू डोर डिलीवरी की व्यवस्था लागू करा दी गयी थी। मात्र एक दो फोन कॉल पर व्यवस्था का स्वरूप समझ कर प्रशासन एवं पुलिस ने एक व्यवस्था को गतिमान कर दिया। पूरे देश मे इसी प्रकार लगभग एकरूप lockdown व्यवस्था संचालित हो गई। विभिन्न राज्यों में तैनात बैचमेट से सम्पर्क कर के उनके यहाँ की जा रही बेस्ट प्रैक्टिस जान कर उसे अल्प समय मे यथावश्यक संशोधित कर के लागू करवाना, यह केवल एक संगठित सिविल सेवा में सम्भव है। तुलना के लिए अमेरिका में lockdown का अनुभव देखा जा सकता है, जहाँ इस प्रकार की एकरूप व्यवस्था नहीं थी।
अतः यह देखा जा सकता है कि सामान्य समय मे संयोजक, एवं आपात स्थिति में संचालक के रूप में सिविल सेवा देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। जनपद में सिविल सेवा के वरिष्ठ व्यक्ति के रूप में मेरी समस्त सिविल सेवको से अपील रहेगी कि समाज द्वारा स्थापित विश्वास को और दृढ़ बनाने के लिए, एवं संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत जन आकांक्षाओं को फलिभूत करते हुए आदर्श भारत की ओर अग्रसर रखने हेतु निरन्तर प्रयासरत रहें।
1 comment:
सिविल सेवा दिवस पर आपको बधाई। निस्संदेह स्थायी कार्यपालिका ने देश को आगे लाने में अभूतपूर्व योगदान दिया है साथ ही मजबूत लोकतंत्र स्थापित करने में इसका योगदान न्यायपालिका के समतुल्य है किंतु कई विषय ऐसे हैं जहाँ और अधिक वास्तविक, फाइलों में नहीं, कार्य की आवश्यकता है भ्रष्टाचार आज के समय की बडी समस्या है जिसका भार सबसे कमजोर पर पडता है। कई योजनाएं दबाव की वजह से सिर्फ फाइलों में पूरी हो जाती हैं जैसे पूरा प्रदेश खुले में शौच से मुक्त हो चुका है यद्पि इसके लिए हमारी मानसिकता ज्यादा जिम्मेदार है जिसके बदलाव मे वक्त लगेगा। फिर भी सिविल सेवा का योगदान देश के विकास में अतुलनीय है
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