आज एक युगान्तकारी दिन है। लगभग 41 वर्ष की सेवा के उपरांत मेरे डैडी श्री विजय कुमार गुप्त सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
41 वर्ष एक औसत भारतीय नागरिक की आधी आयु से अधिक का समय है। उन्होंने भारतीय रेल को 41 वर्ष अपना सर्वस्व दिया। बदले में रेलवे ने भी हमें बहुत कुछ दिया, जो कि आगे वर्णित है। वह सम्बन्ध औपचारिक रूप से आज समाप्त हो रहा है, (या ऐसा कहें, कि अगले चरण में जा रहा है, चूंकि वो अभी रेलवे के पेंशनर और पास धारक रहेंगे!) आर्थिक तंगी के कारण (दादा जी सरकारी नौकरी में छोटे पद पर थे, पर एक संयुक्त परिवार में आय को बहुत लोगों की बहुत सारी आवश्यकताओं को पूर्ण करना होता था) बी टेक नहीं कर पाए थे, अतः 3 वर्षीय डिप्लोमा सिविल इंजीनियरिंग में किया। 19 वर्ष में राज्य की समस्त सेवाओं में न्यूनतम उम्र नहीं पूरी करने के कारण अनमने से रेल सेवा में योगदान दिया। धनबाद के भूली प्रशिक्षण संस्थान में अरुचिकर भोजन के साथ, एवं फील्ड प्रशिक्षण के दौरान प्लेटफार्म बेंच पर रातें गुज़ार कर के अवर अभियंता के न्यूनतम पायदान - रेल पथ निरीक्षक - तृतीय ग्रेड पर मुगलसराय मंडल (वर्तमान पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन) में कार्य शुरू किया। लगन, कौशल, एवं दैवीय कृपा से तेज़ पदोन्नति हुई। विवाह होते होते ग्रेड 2, एवं मेरे होश संभालने तक ग्रेड 1 हो गए थे। ग्रेड 1 में तत्समय फर्स्ट क्लास पास मिलता था, एवं मुझे उस समय बम्बई (वर्तमान मुम्बई) की यात्रा AC श्रेणी में करना याद है। जब तक मैं 4 वर्ष का हुआ, वे प्रभारी निरीक्षक हो गए थे। वर्ष 1995 में विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण कर के राजपत्रित अधिकारी (ग्रुप बी) हो कर सहायक अभियंता, गया (बिहार) बने। इसी मध्य 1994 में मैंने ओक ग्रोव स्कूल मसूरी की चयन परीक्षा उत्तीर्ण कर ली, एवं 1994 में कक्षा 3 से ले कर 2004 में कक्षा 12 तक की पढ़ाई वहीं से की। यह बात यहाँ इसलिए प्रासंगिक है चूंकि यह स्कूल भी भारतीय रेल का ही है, एवं अपने समस्त छात्रों की फीस में, और विशेषकर रेल कर्मचारियों की संतानों की फीस में, अपने समकक्ष एवं समतुल्य बोर्डिंग स्कूलों के सापेक्ष काफी कमी रखते हुए उच्च कोटी की शिक्षा प्रदान करता है।मेरे भाई (और उनकी धर्मपत्नी!) ने भी कक्षा 3 से यहाँ शिक्षा 1999 में प्रारम्भ की, पर उन्होंने कक्षा 10 तक ही यहाँ पढ़ाई की। तब तक डैडी का स्थानांतरण सहायक अभियंता बक्सर (बिहार) के पद पर हो गया था। बक्सर का AEN आवास बहुत ही रमणीक था। जब मेरा मैट्रिक लगा, वे पुनः मुगलसराय आ गए, जहाँ उनकी पदोन्नति मंडल अभियंता के पद पर हो गयी। इस पद पर आगे सोनपुर (बिहार) एवं दानापुर (बिहार) में कार्य किये। वर्ष 2009 में UPSC के अनुमोदन उपरांत उन्हें ग्रुप ए सेवा में IRSE 2002 बैच अवार्ड हुआ। उसी वर्ष इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा से मेरा चयन रेल की ही अन्य सेवा IRSS बैच 2008 में हुआ था। यह एक सुंदर संयोग था कि हम दोनों को रेलवे ग्रुप ए में चयन का पत्र डाक से एक ही दिन मिला था! इसके उपरांत उन्हें वरिष्ठ मंडल अभियंता के प्रभार में पुनः सोनपुर स्थानांतरण मिला, जहाँ अत्यंत विशाल रेलखंड में कोशी नदी के कटान के मध्य रेल मार्ग को सुरक्षित रखने के साथ अन्य कई परीक्षाओं का सामना उन्होंने किया। वर्ष 2012 में मेरा चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो गया, और मेरी जॉइनिंग के कुछ माह बाद उन्होंने भी इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में रेल विद्युतीकरण संगठन में उपमुख्य अभियंता के पद पर योगदान किया। मेरा (एवं मेरे भाई का भी) विवाह सिविल लाइन्स स्थित रेल अधिकारी आवास से ही सम्पन्न हुआ। 6 वर्ष से अधिक प्रयागराज में रहने के उपरांत अंततः उसी संगठन में लखनऊ स्थानांतरण हुआ। आज वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (संयुक्त सचिव, भारत सरकार के समकक्ष) से वे सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इस काल मे कई पदक, कई GM शील्ड से सम्मानित हुए हैं, पर उनका सबसे अच्छा अलंकरण उनके वरिष्ठ जनों एवं कनिष्ठ जनों के मन मे उनके कार्य का सम्मान है।
मैंने लेख के प्रारम्भ में ही बताया था कि डैडी की रेल सेवा ने हमें बहुत कुछ दिया। हमारी औपचारिक शिक्षा में रेलवे की भूमिका के बारे में ऊपर बता ही दिया है। अनौपचारिक रूप से उनकी लगन और मेहनत देखने एवं सीखने को मिली। मेरे बोर्डिंग स्कूल जाने तक तो उनका कार्यदिवस प्रातः 7 बजे से पहले शुरू होता था और साँय 7 के बाद समाप्त होता था। आवास रेलवे स्टेशन के पास ही होता था, और वे सुबह की पहली गाड़ी पकड़ के अपने विशाल सेक्शन के किसी दूरस्थ स्टेशन तक फुटप्लेट निरीक्षण करते हुए, फिर कुछ दूरी ट्राली से निरीक्षण करते हुए, जहाँ तत्समय कार्य चल रहा हो, वहाँ पैदल ही गिट्टी पर कई किलोमीटर चलते हुए निरीक्षण कर (हम देखते थे कि उनके जूतों की सोल कितनी जल्दी फटती थी!), एवं इसी प्रकार विभिन्न माध्यमों से होते हुए देर शाम लौटते थे। उस समय उन्हें रविवार भी घर पर नहीं देखता था। रविवार / वीकेंड मंडल अभियंता पद पर कुछ हद तक मिलने लगे, जब कार्य मे फील्ड का अंश कुछ घटा और कार्यालय अंश बढ़ा। अभी सेवानिवृत्ति के पूर्व के सप्ताह में भी दूरस्थ जगहों पर रेल सुरक्षा के निरीक्षण कराते रहे। और यह लगनशील परिश्रम किसी बॉस के लिए नहीं, आत्मसंतुष्टि के लिए किया; रेलवे की प्रति वफादारी के लिए किया। यह हमें इसलिए पता है, क्योंकि बहुत बार हम लोगों की बोर्डिंग स्कूल में हम लोगों को लाने ले जाने की छुट्टी कैंसिल हो जाती थी, कई पर्व त्योहारों में भी उनका कम समय मिलता था, और ऐसे अवसरों पर हम अनायास इसका कारण पूछ लेते थे! कभी कभी अपने किसी दिशा विमुख कनिष्ठ को समझाते हुए भी उनसे यह बातें सुनी, एवं कालांतर में, जब हम थोड़े बड़े हुए, तो हमे सीधे भी यह बातें समझाई गईं। आज स्वयं कार्य करते समय उनकी उस समय कही बातों की सत्यता का अनुभव होता है।
रेल परिवार एवं समाज मे पलने बढ़ने के कारण हमें तकनीकी ज्ञान भी साथ ही साथ मिला। चंद कदमों पर वर्कशॉप थी, जहाँ आर्क वेल्डिंग और ऑक्सिऐसिटलीन वेल्डिंग करते हुए मिस्त्रियों को देखा। यदि उनका मूड अच्छा हो, और समय हो, तो वे चाभी वाले खिलौने की खोई हुई चाभी की स्पेयर की बना देते थे! थोड़े बड़े हुए तो विभिन्न प्रकार की ट्राली (पुश, स्कूटर, मोटर), विभिन्न प्रकार की ट्रैक मेंटेनर मशीन, एवं रेल इंजन का भी अनुभव हुआ (चंदौली स्टेशन की लूप लाइन, जो बहुत बार उपरोक्त यानों की साइडिंग के रूप में भी प्रयोग होती थी, हमारे आवास के गेट से बमुश्किल 5 मीटर की दूरी पर थी) मेकैनिकल इंजीनियरिंग के समय का व्यवहारिक परीक्षण रेल लोको शेड में किया, MBA की इंटर्नशिप भी रेल उपक्रम में की। इसी लंबे अनुभव का लाभ UPSC इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा के साक्षात्कार में मिला, जब मुझे पता था कि लांग वेल्डेड रेल क्या होती है, thermit welding क्या होती है (मैं यह भी बता सका कि मैंने यह होते हुए देखा है!), रेल के व्हील एक्सेल की माप क्या होती है, उसपर रखे कोच का भार क्या होता है, और उससे एक्सेल में कितना बेन्डिंग मोमेंट पड़ सकता है! उस परीक्षा के इंटरव्यू में मेरे इतने अच्छे नम्बर आ गए कि प्रथम प्रश्न पत्र लगभग छूट जाने के बाद भी मेरी छठी रैंक आ गयी (और मुझे भी 2 वर्ष 3 माह तक रेल सेवा का सौभाग्य मिला!)
मैंने बताया है कि उनकी सेवा का सर्वोच्च अलंकरण उनके साथ कार्य करने वालों के मन मे उनके कार्य कौशल के लिए सम्मान था। यह कार्य कौशल मात्र तकनीकी पहलू में ही नहीं अपितु व्यवहार में भी था। कठिन कार्य लेते समय भी अधीनस्थों के साथ मधुर व्यवहार रखते थे। इसी कारण रेलवे अधिकारियों के मध्य कुख्यात "यूनियन" से भी उत्पन्न होने वाले सभी विवाद सहजता से सुलझा लेते थे। रेलवे स्वयं में एक स्टेट विदिन स्टेट है, और इसमें सभी कर्मचारी अधिकारियों को इंजीनियरिंग विभाग से बहुत कार्य पड़ता है, चूंकि रेल कर्मियों के आवास का रखरखाव इस विभाग के पास होता है। उक्त के सन्दर्भ में बस एक घटना याद आती है। रेलवे नियम में रेलकर्मी के पुत्र को पूरे छात्र जीवन तक स्टूडेंट पास मिलता है। (पुत्री को पास विवाह होने तक मिलता है) IIT दिल्ली में MBA करते समय एक बार पास पर रिजर्वेशन कराने के लिए निकटस्थ रेलवे स्टेशन गया था (IIT में भी एक काउंटर है पर उसपर पास पर आरक्षण नहीं होता था।) हुआ ऐसा था कि उस पास पर पूर्व में पूर्व में भी आरक्षण हो कर निरस्तीकरण हो चुका था, एवं केवल एक अवसर और शेष था (अमूमन अधिकतम 3 रिजर्वेशन/ कैंसलेशन अनुमन्य होते हैं), पर पास पर पूर्व की कार्रवाई बहुत ही अस्त व्यस्त तरीके से की गई थी (यह बुकिंग क्लर्क अपने हाथ से ही लिखता है - इसमें मेरा कोई दोष नहीं था, अपितु पूर्व के बुकिंग क्लर्क की मेहरबानी थी) पर यहाँ वाले सज्जन मुझसे बिगड़ने झगड़ने लगे - कि आपका एक बार मे मन नहीं बनता है कहाँ जाना है, कब जाना है, अब इसमें मैं आगे की एंट्री कहाँ करूँ, पता नहीं कौन कौन पास ले कर आ जाता है। मुझे पास नियम पता थे (अनावश्यक चीज़ें पढ़ते रहने का शौक पहले से है) और मैं जानता था कि अभी एक बार आरक्षण इस पास पर शेष था। साथ ही उक्त बुकिंग क्लर्क का बात करने का तरीका भी पसंद नहीं आ रहा था, तो झगड़ा होने लगा। हालांकि IRCTC के पूर्व की पीढ़ी के लोग जानते होंगे कि उस ज़माने में बुकिंग क्लर्क और बुकिंग करवाने वाले में कितना "पावर डिफरेंशियल" होता था! अतः यह झगड़ा मुझे ही हारना था, और हार को मैं स्वीकार कर ही रहा था, तभी पास को उलटते पलटते उसकी नज़र पासधारक प्रविष्ठि पर पड़ी। अचानक उसके व्यवहार में ज़मीन आसमान का परिवर्तन आ गया। अच्छा, आप गुप्ता जी के पुत्र हैं! पहले क्यों नहीं बताया! (आपने पूछा ही कब) खैर, डैडी की उस समय तक कोई पोस्टिंग कभी मुगलसराय के पश्चिम रही नहीं थी, दिल्ली तो बहुत दूर थी। और रिज़र्वेशन लाइन की भीड़ के दबाव के आलोक में उन सज्जन से इस व्यवहार परिवर्तन का सटीक कारण पूछा नहीं जा सका। पर किसी अन्य विभाग (रेलवे व्यवस्था पर विभागवाद का आक्षेप लगता रहा है, जिसके आलोक में रेल की उच्चतर सेवाओं का एक मे विलय अभी किया जा रहा है), और किसी अन्य ज़ोन के एक कर्मचारी के द्वारा इतनी आत्मीयता दिखाना मुझे बहुत प्रभावित कर गया। जब डैडी से बाद में पूछा तो उनको भी उस नाम के व्यक्ति याद नहीं थे। पर कहीं ना कहीं उसका, या उसके किसी जानने वाले का कोई कार्य बिल्कुल निर्लिप्त भाव से उनके हाथों हुआ होगा। इस प्रकार की ख्याति अर्जित करना सरकारी सेवा में एक ध्येय होना चाहिए।
शासकीय सेवा में कई अधिकारियों / कर्मचारियों के सेवानिवृति के सम्मिलित होता रहा हूँ। मेरे वक्तव्य कुछ हद तक रटे रटाए हो गए हैं (चूंकि ये सत्य होने के कारण बार बार दोहराए भी जाते हैं।) सबसे पहले तो हर सकुशल सेवानिवृत्त होने वाला व्यक्ति साफ कैरियर और अच्छे स्वास्थ्य को लेकर सेवा से मुक्त हो, यह आज के युग मे एक बड़ी उपलब्धि है - क्योंकि कई लोग कैरियर में स्वजनित (या फिर प्रारब्ध में कलंकित) स्थितियों के वश में अपने प्रोफेशनल जीवन को नष्ट कर लेते हैं, और कई बेचारे कार्य के बोझ तले बुरे स्वास्थ्य से असमय काल कवलित हो जाते हैं। अतः सेवानिवृत्त होना एक उपलब्धि है। दूसरी बात यह है कि सेवानिवृत्त व्यक्ति समाज से उऋण हो जाता है। जन्म से लेकर स्वावलम्बी होने तक एक व्यक्ति माता पिता के साथ साथ समाज पर आश्रित रहते हुए एक सामाजिक ऋण अर्जित करता है। स्वावलम्बन के उपरांत अगली पीढ़ी को इसी प्रकार उठाते हुए वह धीरे धीरे सामाजिक ऋण को उतारता है। अतः सेवानिवृत्ति पर एक प्रकार से व्यक्ति समाज से उऋण हो जाता है। अंततः मेरे द्वारा सेवानिवृत्त व्यक्ति के आगे के जीवन सुखमय एवं रुचिकर होने कामना की जाती है। पर इस बार मात्र कामना नहीं, यत्न की आवश्यकता है। अगली पीढ़ी होने के नाते हम पर यह दायित्व है, और उसके महत्त्व का संज्ञान मुझे है। इस दायित्व में सफलता के लिए सदैव ईशप्रार्थी रहूँगा।
6 comments:
After all the years of hardwork, your father has achieved this milestone. May the faithful service of all these years bring him happiness. Happy Retirement Sir!��
~Shahbano Rizvi(rly school Bareilly)
Best wishes for future.
Salute to such a humble personality.
सर,
प्रणाम,
पूरा का पूरा ब्लॉग एक साँस में पढ़ गया...फिर दो बार तीन बार पढ़ा...भावुक कर दिया आपने।
हर बार आँखों में आँसू आते गये...और होंठों पर मुस्कान...
पिता जी को सहृदय प्रणाम और उनके स्वस्थ व दीर्घायु होने के साथ - साथ एक अत्यंत प्रसन्न और सुखद भविष्य की भी मंगल कामना करता हूँ
सादर,
Best wishes to uncle.
I remember the day how easily uncle persuaded to take me with him to MGS during the summer break of 2002 when my parents failed to reach OG due to a family emergency. Me and Shreyans had to share a single berth and uncle made sure that I was at ease throughout the journey. His humble nature is still imprinted in my mind.
बहुत सुंदर वर्णन 🙏
Thank you Maam
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