Sunday, September 5, 2021

शिक्षक दिवस पर

 


देश के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति महामहिम डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस समारोह में उपस्थित सभी गुरुजनों को मेरा हृदय से प्रणाम है। आज मेरे साथ मंचासीन सभी व्यक्तित्व किसी ना किसी तरह से अपने गुरुजनों के आशीर्वाद एवं सहयोग से ही अपने पद और प्रतिष्ठा पर आसीन है। अध्यक्ष जी शिक्षा एवं विशेषज्ञता से एक चिकित्सक हैं, एवं इसके लिए उन्होंने कड़ी प्रतिस्पर्धा उत्तीर्ण करके यह उपलब्धि हासिल की है। इसी प्रकार मंचासीन सभी अधिकारीगण भी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अपने एकेडमिक कैलिबर के आधार पर ही चयनित होकर आज यहां विराजमान है। साथ ही हमारे सभा में उपस्थित सभी सम्मानित शिक्षक गण भी किसी ना किसी प्रतियोगी परीक्षा अथवा चयन प्रक्रिया के माध्यम से ही यहां उपस्थित हैं और इन सब के यहां उपस्थित होने के पीछे इनके स्वयं के गुरुओं की कड़ी मेहनत झलक रही है। इसलिए मैं आज इस सभा में उपस्थित सभी व्यक्तियों के गुरुजनों को भी हृदय से प्रणाम अर्पित करता हूं।

अभी-अभी अध्यक्ष जी ने बताया है कि माता-पिता किसी बच्चे के प्रथम शिक्षक होते हैं, एवं समाज में (और विद्यालय में) उतरने के बाद गुरुजन ही छात्रों के माता-पिता होते हैं। क्योंकि मैं स्वयं एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ा हूं इसलिए मेरे संदर्भ में यह बात और भी सत्य हो जाती है क्योंकि हम वर्ष के 9 महीने अपने माता पिता से दूर रहते थे और हमारे सम्मानित शिक्षक गण हमें पढ़ाने लिखाने के साथ हमारे भोजन, हमारे रहन-सहन, हमारे खेलकूद, एवं अन्य गतिविधियों में भी हमारे दिन रात के साथी होते थे।

मैं देखता हूं कि छात्र वर्ग में शिक्षकों के दायित्व को लेकर के कुछ भ्रांति है। अभी भी बहुत से छात्र यह मानते हैं कि उनकी शैक्षणिक जीवन एवं उपलब्धि के स्तर का पूरा दायित्व उनके शिक्षक का है। अर्थात जो वे पढ़ाएंगे उसे वे ग्रहण कर लेंगे एवं उसके आगे उनका कोई स्वयं का दायित्व नहीं है। क्योंकि आज यहां कुछ छात्र-छात्राएं भी उपस्थित हैं अतः मैं उनसे अनुभव साझा करना चाहता हूँ, कि आपकी जीवन की शैक्षणिक उपलब्धियों में सबसे बड़ी भूमिका आपके स्वअध्ययन अर्थात सेल्फ स्टडी की है। सेल्फ स्टडी का कोई विकल्प नहीं है एवं शिक्षा एक ऐसी चीज है जो कोई आपको परोस नहीं सकता है। जब भी मैं ऐसा कहता हूं तो बहुत से लोग मुझसे है पूछते हैं कि क्या शिक्षक की कोई भूमिका नहीं है? जी हाँ, शिक्षक की एक बहुत ही अपरिहार्य भूमिका है, और वह है कि स्वाध्याय के मध्य कुछ ऐसे क्रिटिकल गैप आ जाते हैं जिन्हें मात्र किताब को पढ़कर या तो समझा नहीं जा सकता है, या फिर समझने में बहुत समय व्यतीत हो जाता है। कुछ कॉन्सेप्ट्स ऐसे होते हैं, कुछ स्किल्स ऐसे होते हैं, कुछ विधाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें एक अनुभवी शिक्षक ही सही से समझा पाता है। अतः छात्रों से मेरा अनुरोध रहेगा कि अपने शिक्षकों की सानिध्य का पूर्ण लाभ उठाने के लिए आप स्वयं कड़ी मेहनत करें स्व अध्ययन करें एवं जहां पर स्व अध्ययन से आपका समाधान ना हो वहां पर अपने शिक्षक की सहायता प्राप्त करें। ऐसे में शिक्षक को भी पढ़ाने में अच्छा लगता है एवं आप का भी ज्ञान अर्जन अच्छे से होता है। 

पदीय दायित्व के कारण आज में आपके समक्ष खड़ा हो कर के आप से वार्ता कर रहा हूं। यह बहुत ही असहज क्षण होता है जब शिक्षकों को कुछ समझाने के लिए कहा जाए। जो पूरे समाज को समझा रहे हैं उन्हें मैं क्या समझा सकता हूं। परंतु एक पूर्व छात्र होने के नाते कुछ बातें आपको बताना चाहूंगा। अच्छा शिक्षक कौन होता है? जरूरी नहीं है कि यह अच्छा विद्वान एक अच्छा शिक्षक हो। बहुत से शिक्षक ऐसे होते हैं जो मात्र 1 दिन पहले किसी टॉपिक को पढ़ के अगले दिन छात्रों को बहुत अच्छे से समझा लेते हैं। उन्हीं के सापेक्ष कुछ ऐसे प्रकांड विद्वान भी होते हैं जिनके छात्र उनकी कक्षा में कुछ नहीं समझ पाते हैं। मेरा मानना है कि शिक्षक के स्वयं के ज्ञान से ज्यादा आवश्यक है कि शिक्षक को अपने सामने बैठे व्यक्ति के अज्ञानता का पूर्ण बोध हो। आप शिक्षक हैं एवं इसमें कोई संशय नहीं है कि आपके ज्ञान का भंडार बहुत बड़ा है। परंतु आपके सामने बैठे हुए छात्र की शैक्षणिक पृष्ठभूमि, पारिवारिक पृष्ठभूमि, एवं सामाजिक पृष्ठभूमि भिन्न प्रकार की हो सकती है एवं उसके पूर्व से सृजित ज्ञान की अपनी एक सीमा होती है। एक अच्छा शिक्षक वही होता है जो अपने छात्र की समझने की क्षमता का सही आकलन करके उसे उस स्तर पर जाकर के उसे उठाए। मैं उदाहरण के रूप में अपने इंजीनियरिंग के समय के डॉक्टर शर्मा का नाम लेना चाहूंगा जो कि हमारे रेफ्रिजरेशन के प्रोफेसर थे। जब पहली बार उनके साथ क्लास हुई तो उन्हें पता चल गया कि फर्स्ट ईयर में हम लोगों ने थर्मोडायनेमिक्स की कोई पढ़ाई नहीं की थी। दूसरी कक्षा तक उनको यह भी पता चल गया कि बहुत से छात्रों को कक्षा ग्यारहवीं की थर्मोडायनेमिक्स का भी पक्का ज्ञान नहीं था। वो स्वयं उद्योग जगत, एवं ISRO और DRDO सरीखी वैज्ञानिक संस्थाओं के लिए सलाहकारी करते थे। पर तीसरी कक्षा से उन्होंने कक्षा ग्यारहवीं के स्तर से थर्मोडायनेमिक्स और हीट के विषय में हमें पढ़ाना प्रारंभ किया। कुछ एक्स्ट्रा क्लासेस लेनी पड़ी, परंतु सेमेस्टर के अंत तक लगभग पूरा बैच थर्मोडायनेमिक्स के साथ-साथ रेफ्रिजरेशन का बहुत अच्छा ज्ञान रखता था। बहुत से शिक्षक ऐसे भी मिले हैं जिन्होंने बस अपना सिर धुना, कि पता नहीं आप कैसे इस कक्षा/संस्थान में आ गए हैं एवं आपको "यह" भी नहीं पता है? जाहिर सी बात है कि वो "यह" क्या था ये मैं बताऊंगा नहीं क्योंकि उस के माध्यम से लोग जान जाएंगे कि हम किस शिक्षक की बात कर रहे हैं और शिक्षक दिवस पर मैं किसी की बुराई नहीं करूंगा। मैं यहां पर पुनः यह दोहराना चाहूंगा अच्छे शिक्षक की यही पहचान होती है कि उसे अपने छात्रों की अज्ञानता का बोध हो और वे उस स्तर तक जा कर के अपने सामने बैठे छात्र को सुलभ तरीके से ज्ञान दे सके। 

हम विगत दिनों में कोविड-19 के सबसे भयानक दौर से निकलकर बाहर आए हैं। लॉकडाउन के समय छात्रों की पढ़ाई की निरंतरता को बनाए रखने के लिए हमारे शिक्षकों ने बहुत से नवाचार किए हैं जो कि सम्मान एवं प्रशंसा के पात्र हैं। साथ ही कोविड-19 समय घर-घर सर्वेक्षण में भी शिक्षकों ने बहुत अच्छा योगदान दिया है जिसके लिए जिला प्रशासन की तरफ से एवं व्यक्तिगत रूप से मैं सबको धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूंगा। कोविड-19 के ही मध्य में निर्वाचन की भी प्रक्रिया हुई, जिसमें लोकतंत्र की वेदी पर हमारे बहुत से शिक्षक साथियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिन्हें हम अपने श्रद्धा सुमन भी आज अर्पित करते है। 

मेरे पिताजी, एवं उनके समय के कई छात्र बताते हैं कि उनके गाँव के स्कूल में मात्र एक कमरा होता था, एवं उनकी बहुत सी पढ़ाई कभी वृक्ष के नीचे, और सर्दी में खुली धूप में टाट बिछाकर होती थी। उस समय संसाधन बहुत कम थे, परंतु शिक्षक का समाज में सम्मान अलग स्तर का था। स्कूल के उपरांत भी जब "मास्टर साहब" बाजार में निकलते थे तो छोटी उम्र के बच्चे उनके भ्रमण क्षेत्र से ऐसे गायब होते थे जैसे गधे के सर से सींग। उन्हें भय रहता था कि अगर मास्टरजी पकड़ के अभी 8 का पहाड़ा पूछ लेंगे तो भरे समाज में मिट्टी पलीद हो जाएगी। बच्चों के अभिभावक भी शिक्षक गणों को बड़े सम्मान से बिठाते थे एवं अपने बच्चों के विषय में जानकारी लेते थे। बहुत कुछ इसी तरह का सम्मान मैंने भी अपने छात्र जीवन में अपने माता-पिता को अपने शिक्षक गणों को देते हुए देखा है। आज शिक्षा व्यवस्था में संसाधन की कमी नहीं रह गई है। विद्यालयों का कायाकल्प द्रुत गति से हो रहा है। छात्रों को बहुत सारी सुविधाएं शासन द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है। परंतु कहीं ना कहीं समाज द्वारा, अभिभावकों द्वारा, एवं स्वयं छात्रों द्वारा भी शिक्षक को एक सेवा प्रदाता मात्र के रूप में देखा जाने लगा है। बहुधा जनसुनवाई के समय कुछ छात्र क्लास छोड़कर अपने शिक्षकों की शिकायत करने के लिए मेरे समक्ष उपस्थित होते हैं और यह देख कर के बहुत दुख होता है । बहुत ही तकनीकी रूप से देखा जाए तो यह सत्य है कि शिक्षक एक सेवा प्रदाता है। परंतु शिक्षक की गरिमा एक अलग पायदान पर रखना एक स्वस्थ समाज के विकास हेतु बहुत आवश्यक है। इसके लिए समाज का दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा। मेरे द्वारा, एवं जिन अधीनस्थ अधिकारियों से मेरी बातचीत होती है उनके द्वारा भी, विद्यालय निरीक्षण के दौरान प्रयास यह रहता है कि यदि किसी चीज में कोई कमी मिले तो संबंधित शिक्षक को वह बात अकेले में बताई जाए ना कि उनके छात्रों के सामने। वहीं यदि कोई बात प्रशंसनीय हो तो उसे सबके सामने व्यक्त किया जाए। साथ ही हमारे शिक्षक साथियों को भी यह ध्यान रखना होगा कि समाज एवं अभिभावक वर्ग की नजरों में उनकी स्थिति एक सेवा प्रदाता की होने के पीछे भी वर्तमान में विद्यालयों में आ रही संसाधनों की उपलब्धता कुछ हद तक उत्तरदायी है। अतः अपने कार्यकाल में इन संसाधनों के विषय में जो भी कार्यवाही करें उसे संदेह से बिल्कुल परे रखें। जैसे बिना पोटेंशियल डिफरेंस के करंट का फ्लो नहीं बनता है उसी प्रकार बिना शिक्षक की गरिमा को एक ऊंचे पायदान पर रखें शिक्षा का प्रवाह भी नहीं संभव हो सकता है। मैं पुनः आप सब को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूं। धन्यवाद। जय हिंद, जय भारत।

(शिक्षक सम्मान समारोह, क्षत्रिय भवन, सुलतानपुर में दिए गए वक्तव्य से उद्धृत)


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